मेधा पाटकर को मानहानि मामले में 5 महीने कैद की सजा, 10 लाख रुपये का जुर्माना

नई दिल्ली (जीरो लाइन न्यूज़) दिल्ली की एक अदालत ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को 23 साल पुराने मानहानि के एक मामले में पांच महीने के कारावास की सजा सुनायी है. मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. यह मामला दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना ने उनके खिलाफ उस वक्त दायर किया था जब वह (सक्सेना) गुजरात में एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के प्रमुख थे. न्यायाधीश ने कहा कि सजा 30 दिनों के लिए निलंबित रहेगी, जिससे पाटकर को अपील दायर करने की अनुमति मिल जाएगी.
क्या था पूरा मामला?
2000 में, सक्सेना, जो उस समय खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) के अध्यक्ष थे, ने पाटकर के नर्मदा बचाओ आंदोलन (NBA) के खिलाफ एक विज्ञापन प्रकाशित किया, जिसमें नर्मदा नदी पर बांधों के निर्माण का विरोध किया गया था. विज्ञापन के प्रकाशन के बाद, पाटकर ने सक्सेना के खिलाफ एक प्रेस नोटिस जारी किया. इस प्रेस नोट की रिपोर्टिंग के कारण सक्सेना ने 2001 में अहमदाबाद की एक अदालत में पाटकर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था. मानहानि के मुकदमे में, सक्सेना ने पाटकर पर उनके खिलाफ अपमानजनक बयान देने का आरोप लगाया, जिसमें उन्हें “कायर” और “देशभक्त नहीं” कहना शामिल था, और आरोप लगाया था कि वह “गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को बिल गेट्स और वोल्फेंसन के सामने गिरवी रख रहे हैं” और वह “गुजरात सरकार के एजेंट” हैं. अदालत ने पाटकर को मानहानि का दोषी पाया और फैसला सुनाया कि उनके बयान “भड़काऊ” थे और “उनका उद्देश्य जनता में आक्रोश भड़काना और समुदाय की नजरों में उनकी प्रतिष्ठा को कम करना था”.

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